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अपारिष कौ अंग / साखी / कबीर

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पाइ पदारथ पेलि करि, कंकर लीया हाथि।
जोड़ी बिछुटी हंस की, पड़ा बगाँ के साथि॥1॥
टिप्पणी: ख-चल्याँ बगाँ के साथि।
टिप्पणी: ख प्रति में इसके पहिले ये दोहे हैं-
चंदन रूख बदस गयो, जण जण कहे पलास।
ज्यों ज्यों चूल्है लोंकिए, त्यूँ त्यूँ अधिकी बास॥1॥
हंसड़ो तो महाराण को, उड़ि पड्यो थलियाँह।
बगुलौ करि करि मारियो, सझ न जाँणै त्याँह॥2॥
हंस बगाँ के पाहुँना, कहीं दसा कै केरि।
बगुला कांई गरबियाँ, बैठा पाँख पषेरि॥3॥
बगुला हंस मनाइ लै, नेड़ों थकाँ बहोड़ि।
त्याँह बैठा तूँ उजला, त्यों हंस्यौ प्रीति न तोड़ि॥4॥

एक अचंभा देखिया, हीरा हाटि बिकाइ।
परिषणहारे बाहिरा, कौड़ी बदले जाइ॥2॥

कबीर गुदड़ी बीषरी, सौदा गया बिकाइ।
खोटा बाँध्याँ गाँठड़ी, इब कुछ लिया न जाइ॥3॥

पैड़ै मोती बिखर्‌या, अंधा निकस्या आइ।
जोति बिनाँ जगदीश की, जगत उलंघ्या जाइ॥4॥

कबीर यहु जग अंधला, जैसी अंधी गाइ।
बछा था सो मरि गया, ऊभी चाँम चटाइ॥5॥737॥