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अपील / अनुभूति गुप्ता
Kavita Kosh से
आँखों के नम गलियारों में
पुरानी यादें कूच करती हैं
बरबस,
सीने पर बैचेनी के
साँपों-सी लौटती हैं
अकस्मात
उर उद्वेग से भर जाता है
मानो...
किसी बन्द दरवाजे़ को
कोई बरसांे बाद खटखटाता है
भीतर से
दीवारें चींखती हैं...
बड़बड़ाती हैं..
चिड़चिड़ेपन से कहती हंैहै
कि:
अब क्यों आये हो
दिशाओं में
उजला आँचल लहराने को?
जब कि-
पहले ही हमारी
अनपेक्षित निराशाओं
भयानक चिंताओं की
अपील को
सिरे से ख़ारिज कर चुके हो।