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अपील / माया मृग

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काली, निर्मम सी दीखती
कठोर चट्टानों की परतों
के निचे
कहीं है तो सही
कोई ‘सोता’ पानी का।

पानी-जो शीतल हैं
पानी-जो समम है
पानी-जो नहीं जानता
भेद
कर्मी-अकर्मी में,
सहज ही हो जाता है-तद्गुण।
प्यास
चाहे देवता की हो या
राक्षस की
महज एक प्रश्न है-छोटा सा
कि जिसका उत्तर
वह सदियों से जानता है।
आकाश के न्यायाधिशों ने
फैसला सुनाया है
चट्टान की बदसूरती के
खिलाफ
चट्टान की कठोरता के
विरूद्ध !
मुझे आपत्ति है,
मुझे बार-बार आपत्ति है।
मेरे नेही, मेरे मित्र !
चट्टान की परतों को
उघाड़ने का धैर्य
रखकर
मैं
पानी होने के पक्ष में
फैसले पर
पुनर्विचार की अपील करता हूँ।
वाद-प्रतिवाद
चट्टान के टूटने तक हैं।

इसलिए-अपील है मेरी
कि अब चर्चा
चट्टान की बदसूरती
और कठोरता पर नहीं
पानी के शीतल स्पर्श पर
होनी चाहीए।