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अपूरब गोस्वामी के प्रेत से भेंट / तोताबाला ठाकुर / अम्बर रंजना पाण्डेय

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उखरामठ में भगवान के विग्रह से उतार मारी कण्ठ पर
तुलसी दल की माला महन्त ने
जैसे स्वामी स्त्री की ताड़ना करता है लीला। लीला में
रात्रिभर तुलसीपत्र की माला पहने जागती रही

अपूरब गोस्वामी ने कमल के फूलों से एक दोपहरी
मेरे अबसन नितम्बों का प्रहर भर ताड़न किया था
पद्म जानो खिल गए थे नितम्बों पर ऐसे रक्ताभ
वह हो गए थे, हाथ फेरने पर भी पीड़ित होते थे
उखरामठ में आकर निम्बार्क प्रभु

यह कैसी ताड़ना की इच्छावती मैं कीच में गिरती हूँ
रात्रि रास की बेला अपूरब गोस्वामी आ बैठ गए मेरे निकट
माँगने लगे कौर का प्रसाद
'कहाँ रही इतने दिन मेरी दुलारी तोता बाला ठाकुर?'

'तुम कहाँ चले गए थे अपूरब गोस्वामी, कोलाहल से भरे भुवन में अपनी तोता को त्याग ?'
दोनों ने दिया नहीं कोई उत्तर खिला दिया भोग का
पेड़ा और संदेश
 
जाने लगे जब — मैं रोई । तब बोले अपूरब गोस्वामी
'यह सालिग्राम, यह रासमण्डल, यह नक्षत्र, यह सुवर्णरेखा
ये तुम्हारे अब तक पुष्ट नितम्ब और जोगिया से झाँकती
कदली के खम्भ की भाँति जँघाएँ
यह युगलछबि से उतरे कमलकुसुम और कर्पूरगन्ध
सब उसकी छाया है
भिन्न भिन्न प्रकट हो रही है क्योंकि
ब्रह्मतत्त्व इनमें अल्प-अधिक है'

अन्तर्धान हो गए रह गया छबि का संस्मरण
कर्पूर की गन्ध की भाँति कथा सुनने के पश्चात
दुख की भाँति जो ह्रदय भरता है किन्तु दूर होता है
ढोल सुनकर रोने लगी तब आचार्य बोले — 
'संस्कार है ये ऐसी ही धुलता है ।