भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपूर्णता तेरा स्वागत / हरीसिंह पाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पूर्णता है कहाँ?
यदि पूर्ण हो ही गया
तो शेष क्या रहा?
पूर्ण होने पर
संसार ही असार है।
इसीलिए अपूर्णता
तेरा स्वागत है।
तुझ में ही तो
संसार चक्र चल रहा है।
सभी गतिशील हैं
प्रयत्नशील हैं,
सक्रिय हैं पूर्णता पाने को।
परंतु मिल कहाँ पाती है?
अधूरापन लिये सब जी रहे हैं।
अधूरे सपने, अधूरे संकल्प
जीवन इन्हीं में व्यतीत हो जाता
और मृत्यु के आलिंगन में
मिल जाती है पूर्णता।