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अपेक्षाओं की अलमारी / अनुभूति गुप्ता

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खामोशियों से
अनकही
बचकानी बातें
हो जायें,
तनहाइयाँ बतलाती हैं
कि-
शहर
बहुत अकेला है
लोगों के चेहरों पर
मुस्कान नकली है
दिलों मे खुशी
कहाँ टिकती हैं

घर है,
महँगी गाड़ी
फिर भी
उदास है
अपेक्षाओं की अलमारी।