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अपेक्षाओं के भारी पात्र में / भावना मिश्र
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अपेक्षाओं के भारी पात्र में
भरा है कोमल इच्छाओं का जल
और चढ़ा दिया गया है
जीवन की अंगीठी पर
सम्बन्धों से चुराकर
थोड़ी शक्कर और पत्ती
डाल देती हूँ इस पात्र में
इस तरह इच्छाएँ बच गई हैं
वाष्पित होने से
थम गया है जीवन का ताप
कि जीवन समावेश में है
स्वाद में है
और चाय में भी!
जीवन में कुछ ही विषय इतने मोहक हैं
कि उनपर सोचते हुए
मन दार्शनिक हुआ जाता है