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अप्पन मिथिला / कालीकान्त झा ‘बूच’

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ज्ञान विचार भक्ति भावक भंडार अप्पन मिथिला
भोग बीच योगक निरमल संसार अप्पन मिथिला
ई एहनोटा बेटा पौलनि
जे त्रिभुवन मे पिता कहौलनि
अंग्मेदिनी अपरा माया
कोर आबि कऽ बनली जाया
ब्रह्माण्डक ई अद्भुत् चमत्कार अपन मिथिला...
 
शुकदेवो ई महिमा जनलनि
परमगुरू जनक केॅ मनलनि
भोगी केॅ देहोक मोह नहि,
योगी तमकथि तुम्मा रहि रहि
धरती की आकाशे केर घर-द्वार अप्पन मिथिला...
 
जे सदैव सभ केॅ नचवै छथि
आदि शक्ति माया कहवै छथि
सुक्खे से बनली तिरहुतनी
भूमि लोटि कऽ भेली भुतनी
तिनके कयलनि रचि-रचि कऽ श्रृंगार अप्पन मिथिला...
 
गौतम- कपिल- कणदि- अयाची
उदयन सन आचार्य भेल छथि
मंडित हमरा कर्मशक्ति लग
ज्ञानक पंडित हारि गेल छथि
न्याय दर्शनक सभसँ पैघ टघार अप्पन मिथिला...
 
शास्त्र वैह‘ – हम जेे सुनवै छी
‘‘काव्य वैह‘‘- हम जैह गवै छी
परम सोहनगर मैथिल अंगना
सभ सँ मिठगर देसिल बयना
कवि कोकिल विद्यापति कंठक हार अप्पन मिथिला...
 
आइ गरीब- मुदा फकने छी
पथिया भरल मखानक लावा
बासमती चूडा सानल-
मिट्ठूर अमौट गलि औलनि बाबा
भरल चङेरा, चूड़ा दहीक भार अप्पन मिथिला...
 
गंगो दीदी चाह बनावथि
कमला बेटी पान लगावथि
कोसी बहिना धान कुटै छथि
बागमती सिदहा फटकै छथि
धऽरक लक्ष्मी विहुंसथि माँझ ओसार अप्पन मिथिला...