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अप्प दीपो भव / अंगुलिमाल 1 / कुमार रवींद्र
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					बहुत देर 
रहा मौन
एकाकी अंगुलिमाल 
उसने था सिरजा दुख 
निर्मम हत्याओं का 
'राच्छस' था हुआ क्रूर  
लोक की कथाओं का 
उसे नहीं 
व्यापा था  
इच्छा का मकड़जाल 
यही सत्य था उसका -
कटी हुई उँगलियाँ 
डरे हुए नगर-गाँव 
वन-पर्वत-घाटियाँ 
आसपास 
उसके थे 
लहू-भरे सिर्फ ताल 
और तभी आये थे बुद्ध 
किसी भोर-सपने-से 
और सब अपरिचित थे 
वही लगे अपने-से 
उन्हें देख 
जागे थे 
उसके मन में सवाल
	
	