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अप्प दीपो भव / तथागत बुद्ध 11 / कुमार रवींद्र
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बुद्ध हुए मौन
'शब्द' हो गया मुखर
राग-द्वेष
दोनों से हुए परे
सड़े हुए लुगड़े-से
मोह झरे
करुणा ही शेष रही
जो है अक्षर
अन्तहीन साँसों का
चक्र रुका
कष्टों के आगे
सिर नहीं झुका
गूँजे धम्म-मन्त्रों से
गाँव-गली-घर
ऋषियों की भूमि रही
सारनाथ
करुणा का वहीं उठा
वरद हाथ
क्षितिजों को बेध गये
बुद्धों के स्वर