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अप्प दीपो भव / तथागत बुद्ध 12 / कुमार रवींद्र
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जहाँ-जहाँ
गये बुद्ध
वहीं-वहीं खुले द्वार
कुटिया से महलों तक
करुणा की नदी बही
मानुष औ' मानुष के बीच की
नकली दीवार ढही
हो गई
निरर्थक सब
युद्धों की जीत-हार
प्राणों से प्राणों तक
सेतु बँधे नेह के
'बुद्धं शरणं गच्छामि'
ताप मिटे देह के
सुक्ख-दुक्ख
दोनों के
मिट गये सभी विकार
श्रेष्ठि-नृपति-वारवधू
सभी हुए शरणागत
व्याप गई घर-घर में
बुद्ध की कथा शाश्वत
आज भी
गुणीजन मिल
करते उस पर विचार