और ...
वह यशोधरा का बंधन
बुद्ध हँसे मन-ही-मन
शौर्य-कथा राग की -
स्वयंबर की
हुई किंवदन्ती जो
घर-घर की
शिशु की
किलकारी से भरा-पुरा था आँगन
उन्हीं दिनों मिले उन्हें
तीन गुरू
उनसे ही बुद्धकथा
हुई शुरू
सबके हैं संगी वे-
रोग-मृत्यु- बूढ़ापन
क्षणिक हुई
यशोधरा -राहुल भी
अर्थहीन हुई देह
और पिता का कुल भी
याद रहा
उन्हें सिर्फ़ आत्मा का ही क्रन्दन