भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अप्प दीपो भव / तथागत बुद्ध 7 / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

और...
सुजाता आई उस दिन
       वनदेवों को खीर चढ़ाने

उसने पूजा था गौतम को
देव मानकर
वही आस्था बना गई थी
उनको अक्षर

शुभ मुहूर्त्त था
उरुबेला थी
     उनकर भीतर देव समाये

खीर नहीं
वह टी ममता थी माँ की पूरी
उसको पाकर
तृप्ति नहीं रही थी अधूरी

लगा बुद्ध को
जैसे अमृत मिला था उन्हें
                 इसी बहाने

सहज हुईं थीं
उनकी सारी ही संज्ञाएँ
क्षितिज हटे थे
अन्तरिक्ष थीं हुईं दिशाएँ

शिला हटी थी
गुफा-द्वार खुल गये सभी
             जाने-अनजाने