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अप्प दीपो भव / तथागत बुद्ध 8 / कुमार रवींद्र

कालरात्रि वह उन्हें याद है
               जो कल बीती

आँख बंद थी
किन्तु कहीं भीतर थी हलचल
माया मन्मथ की -
बहते थे झरने चंचल

देख रहीं थीं सारे छल को
                   साँसें रीती

एक तरफ आकाशकुसुम थे
कई रंग के
दूजी ओर शूलवन भी थे
अलग ढंग के

एक साथ थीं छुव्नें दोनों
                   मीठी-तीती

अप्सराएँ थीं
और आग्रही थीं इच्छाएँ
किन्तु वहीं थीं
जन्मों-जन्मों की पीड़ाएँ

अंतिम क्षण में दोनों से थी
                   करुणा जीती