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अप्प दीपो भव / तथागत बुद्ध 9 / कुमार रवींद्र

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फल्गु तट के एकांत में
           बुद्ध गीत हो गये

जल की लय
उनके मन-प्राणों में समा गई
सूर्योदय होने की
आस्था थी नई-नई

एक घनी करुणा
थी साँसों में व्याप गई
           बुद्ध प्रीत हो गये

बैठे थे
आदिम वटवृक्ष तले
उसकी शाखाओं में
उनके थे पुण्य फले

धूप-छाँव से निस्पृह
'पत्र-पुष्प-तोयं' की
           बुद्ध रीत हो गये

जन्मों के
पाप-ताप-शाप कटे
जोत जगी
सदियों के सभी अंधकार छंटे

देह हुई थी केंचुल
आत्मन के
          बुद्ध मीत हो गये