और...
देवदत्त रहा था अशांत
बचपन से
हंस हुआ आहत था
उसके ही बान से
गौतम की करुणा का
वह प्रसंग -
और जला था वह अपमान से
रहा अश्व जैसा वह
छूटा हो जो औचक
स्यन्दन से
लाग-डाँट गौतम से -
भिक्षु भी हुआ था वह
गौतम थे बुद्ध हुए
सर्वपूज्य -
उसे मिला तिरस्कार ही दुस्सह
छूट नहीं पाया था
अपने ही रचे हुए
दुक्खों के बंधन से
उसने षड्यंत्र रचे
बुद्ध रहे किन्तु अचल
खोल नहीं पाया वह
मन पर
जो लगी हुई थी साँकल
कोख में समय था
धरती की
उपजे थे नाग वहीं चंदन से
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