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अप्प दीपो भव / नन्द 1 / कुमार रवींद्र
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नन्द सहज नहीं हो पाये
उनका सौन्दर्यबोध
उनके आड़े आया
सब कुछ हो सुन्दर ही -
यह हठ था मनभाया
साँसों में
सात रंग सूरज के थे छाये
वंशी औ' वीणा के
सुर उन्हें लुभाते थे
दृश्य नदी-झरनों के
याद उन्हें आते थे
माया से
फागुनी हवाओं के वे थे बौराये
देह-गंध और छुवन
लगती थी उन्हें सगी
पिंजरे में सोने के
गाती थी गीत खगी
धरती के
सारे ही बंधन थे नन्द को सुहाये