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अप्प दीपो भव / नन्द 5 / कुमार रवींद्र

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नन्द हो गये
हतप्रभ - सम्मोहित भी

शुभ मुहूर्त्त में आये भाई
उन्हें दुलारा
भिक्षापात्र दिया हाथों में
मौन उचारा

नन्द चले
पीछे सकुचाये
भीतर-भीतर रहे व्यथित भी

राजमार्ग से जनपथ आया
नगर-द्वार भी
बाहर निकले
आया था प्रभु का विहार भी

साँझ हुई थी
महाशांति से
नन्द घिरे थे- हुए चकित भी

छायाएँ आकार हुईं थीं
निस्पृह-निर्मम
घनी रात थी
किन्तु कटा था सारा ही तम

सब कुछ सुन्दर
सब कुछ शिव था
हुए नन्द थे इच्छाजित भी