अचरज से भरे हुए
अन्तहीन स्वप्न हुए हैं राहुल
सात बरस का बालक
सागर गम्भीर हुआ
मन जैसे नभगामी
उड़नातुर कीर हुआ
जन्मों का बिसराया
उन्हें मिला शास्ता कुल
राग-द्वेष दोनों से
पल भर में परे हुए
कंधे से उतर गये
इच्छा के सभी जुए
पार सभी घाटों के
दिखा उन्हें ऋत का पुल
आरती हुईं साँसें
फूलों-सी देह हुई
लगा उन्हें ऋतुएँ सब
जैसे हों नेह-छुई
बूँद-बूँद
नेह-नदी आँख में रही है