बैठे हैं राहुल
चुप झील के किनारे पर
झील नहीं
यह उनका देह-राग बिछा हुआ
टेर रहा कोई देव
लहरों में छिपा हुआ
ऊपर से
पूनो की चाँदनी रही है झर
बचपन में
वीतराग होना आसन रहा
इच्छाएँ वेगहीन -
उनको था सहज सहा
पर अब तो
उभर रहे देह में ऋतु-अक्षर
यह आतप जो भीतर
बरखा में और तपा
अन्दर के वायु-वेग
उनमें मन बहुत कँपा
किन्हीं
अप्सराओं के उमग रहे मीठे स्वर