भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अप्प दीपो भव / राहुल 2 / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बैठे हैं राहुल
चुप झील के किनारे पर

झील नहीं
यह उनका देह-राग बिछा हुआ
टेर रहा कोई देव
लहरों में छिपा हुआ

ऊपर से
पूनो की चाँदनी रही है झर

बचपन में
वीतराग होना आसन रहा
इच्छाएँ वेगहीन -
उनको था सहज सहा

पर अब तो
उभर रहे देह में ऋतु-अक्षर

यह आतप जो भीतर
बरखा में और तपा
अन्दर के वायु-वेग
उनमें मन बहुत कँपा

किन्हीं
अप्सराओं के उमग रहे मीठे स्वर