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अप्प दीपो भव / राहुल 3 / कुमार रवींद्र

और...
पिता ने उनको फिर था
               संबोध दिया

रोको मत रागों को
बहने दो
देखो, कहाँ-कहाँ जाते हैं
ऐसे वे साथ नहीं छोड़ेंगे
उनसे तो जन्मों के नाते हैं

जानो यह
आधा रस ही तुमने क्यों है
                हर बार पिया

सिमटी जल-धार रहे हो
अब तक
महानदी हो जाओ
एक महासागर है
साँसों का अंतहीन
उसमें ही खो जाओ

भन्ते !
आकाशदीप बनो
याकि कुटिया में जला दिया

वासनाएँ सच हैं
पर उतने ही सच हैं दुख
जो उनसे हैं उपजे
बंधन जो बाँध रहे हैं तुमको
तुमने ही तो हैं सिरजे

सोचो
क्यों तुमने यह बार-बार
       जीवन निस्सार जिया