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अप्प दीपो भव / शुद्धोदन 2 / कुमार रवींद्र

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बाहर है अँधियारा - भीतर भी राजा के

क्या था कल - क्या है अब
सोच रहे शुद्धोदन
भिक्षु हुए सभी कुँवर
धीर नहीं धरता मन

सूख गये सभी ताल-पोखर भी राजा के

सात वर्ष पिछले थे
शनि की साढ़े-साती
देख दशा महलों की
फटती उनकी छाती

फेरे मुँह खड़े सभी चाकर भी राजा के

कौन उन्हें साजे अब
ढह रहे कँगूरे हैं
महलों में -आसपास
जगह-जगह घूरे हैं

झूठे हो गये सभी आखर भी राजा के