भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अप्रवासी / रमेश आज़ाद
Kavita Kosh से
गगनचुम्बी इमारतों के बीच
जहां
आकर बसे हैं
अपना कहने को कोई दरवाजा नहीं है।
जहां
छूटा था घर
वहां लौटने का
अब कोई रास्ता नहीं है...