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अप्सरा / तेज राम शर्मा
Kavita Kosh से
जब पत्थर भी
सपने लेने लगते हैं
तब मैं स्वर्ग से उतर कर
उत्तान वृक्षों वाला रूप धरती हूँ
मेरे सम्मोहन में शिल्पी
मेरे विशाल नेत्रों के दर्पण में
अनन्त सुंदरता की झलक देखता है
मोहवश
बाँध लेना चाहता है कोई शिल्पी
मेरी स्वतंत्र विचरती आत्मा को
मेरी आँखों में
ऊषा की लाली देख
वह घबरा जाता है
मैं मदमाती चाल से
पहुँच जाती हूँ नीलाभपर्यंत
अपने साम्राज्य में
वहाँ मैं दंतकथाओं के दुःस्वपन से
जाग कर
स्वस्थ हृदय में
लहू की लयात्मक धड़कन को
पहचान लेती हूँ
अपनी विशाल आँखों की चमक में
बाँधे रखती हूँ सहृदय मन को।