भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अफ़ीमची / श्रीप्रकाश शुक्ल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गाजीपुर की अफीम फैक्टरी के नसेड़ी बंदरों को देखकर

वे अफीमची हैं
दुनिया की सबसे बड़ी फैक्टरी के सबसे छोटे उत्पाद!

उनके पास भी सपने हैं
उनकी अपनी तराजू भी है
लेकिन उनके पास ताक़त नहीं है

वे इस शहर के बीचो-बीच
अपनी ठहरी हुई सुर्ख आँखों से
लोगों को निहारते रहते हैं

उनका अपना इतिहास इतिहास के बाहर है
उनका अपना भूगोल भूगोल से अलग है
उनका अपना जीवन जीवन से दूर है

उन्होंने जितनी बार जीवन में आने की कोशिश की है
उन्हें मौन कर दिया गया है
वे इस दुनियाँ के पूर्वज हैं
जो ऊपर से बंदर दिखते हैं नीचे से आदमी
अपनी ताकत से वे
जार्ज बुश से लेकर बाजपेयी तक को हिला सकते हैं
ऊसर में गुलाब खिला सकते हैं
और रेत में पानी

वे अपनी दुनिया के बादशाह हैं
जिनकी आँखों में एक बूंद पानी भी नहीं है
हालाँकि अपनी नज़रों से वे समुद्र थाह सकते हैं

वे अफीमची हैं
इस सचल दुनिया के एक मात्र अचल प्राणी !