भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अफ़्कार तो आए हैं उम्मीद भी आ पहुँचे / रवि सिन्हा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अफ़्कार<ref>सोच, चिन्ताएँ (thoughts, worries)</ref> तो आए हैं उम्मीद भी आ पहुँचे
ये मर्ज़ हक़ीक़त का ख़्वाबों की दवा पहुँचे

क्यूँ हब्स<ref>घुटन (suffocation)</ref> फ़ज़ा<ref>वातावरण (atmosphere)</ref> में है तारीख़ से बू आए
इमरोज़<ref>आज का दिन (today)</ref> की साँसों को फ़र्दा<ref>आने वाला कल (tomorrow)</ref> की सबा<ref>बयार (wind)</ref> पहुँचे

बीनिश<ref>दृष्टि, अन्तर्दृष्टि, विवेक (insight, wisdom)</ref> के दरीचे<ref>खिड़की (window)</ref> से माज़ी<ref>अतीत (past)</ref> ही नज़र आए
भटके है वहाँ कोई उस तक तो सदा<ref>पुकार (call)</ref> पहुँचे

हर बूद<ref>अस्तित्व (existence)</ref> में ज़र्रे में होने से तो क्या होगा
जो रोज़ पुकारे है उस तक तो ख़ुदा पहुँचे

लाए के न कुछ लाए ये सुब्ह तो आ जाए
ख़बरें हों भले बासी अख़बार नया पहुँचे

शब्दार्थ
<references/>