अफ़्रीका / अनिल अनलहातु
हमारे समय के एक बहुत बड़े कवि का
यह कहना कितना खतरनाक है कि
“ वे पेड़-पौधों की भाँति चुपचाप
जीने वाले सीधे लोग हैं ...
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यह
एक पूरी की पूरी जाति
मानवता, सभ्यता को
क्या जंगल में
तब्दील कर देना नहीं है ?
एक पूरे महादेश को,
जहाँ पर मानव (होमो-इरेक्टस) का
सर्वप्रथम विकास हुआ,
अन्ध महादेश घोषित
किया जाना कौन सी
सभ्यता है ??
एक समूचे महादेश को
उसकी भाषा से वँचित कर देना
क्या अपराध नहीं है ?
है न यह अजीब बात
कि दुनिया को सभ्यता का पाठ
पढ़ाने वाले महादेश को
चार सौ सालों से ग़ुलाम रहे देश
का एक अदना-सा कवि जुबान दे
उसे बताए कि भाषा की तमीज़
क्या होती है !
कि भाषा बुद्ध या ईसा का दाँत नहीं
कि उसपर तुम खड़ा कर सको
अपनी श्रेष्ठता का स्तूप ।