भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अफ़्सोस तुम्हें कार के शीशे का हुआ है / हबीब जालिब

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अफ़्सोस तुम्हें कार के शीशे का हुआ है
पर्वा नहीं इक माँ का जो दिल टूट गया है

होता है असर तुम पे कहाँ नाला-ए-ग़म का
बरहम जो हुई बज़्म-ए-तरब इस का गिला है

फ़िरऔन भी नमरूद भी गुज़रे हैं जहाँ में
रहता है यहाँ कौन यहाँ कौन रहा है

तुम ज़ुल्म कहाँ तक तह-ए-अफ़्लाक करोगे
ये बात न भूलो कि हमारा भी ख़ुदा है

आज़ादी-ए-इनसान के वहीं फूल खिलेंगे
जिस जा पे ज़हीर आज तिरा ख़ून गिरा है

ता-चन्द रहेगी ये शब-ए-ग़म की सियाही
रस्ता कोई सूरज का कहीं रोक सका है

तू आज का शाइ'र है तो कर मेरी तरह बात
जैसे मिरे होंटों पे मिरे दिल की सदा है