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अबकी बार हमरा के अपना ल हे नाथ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’

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अबकी बार
हमरा के अपना ल हे नाथ,
अपना ल।
मिनती हमार,
मान ल हे नाथ, मान ल।
अबकी बार हमरा हृदय में
बस जा, हे नाथ, बस जा।
अब कभी तूं हमरा हृदय से
निकल के मत जा हो, मत जा।
जवन दिन तहरा बिन बीतल
से फेर मत लवटो।
माटी हो गइल ऊ दिन
जवन तहरा बिना बीतल।
अब त तहरे प्रकाश से
जीवन के प्रकाशित करे ला
दिन रात जाग रहल बानीं
जाग रहल बानीं।।
ना जानीं जे कवना उन्माद में
केकरा के खोजे खातिर
जेने-तेने, राहे-बेरहे
आजले भटकली हम
आजले बहुअइली हम।
ना जानीं जे केकर कथा सुनेला
कहाँ-कहँ गइलीं हम
कहाँ-कहँ अइलीभें हम।।
अबकी बार हमरा छाती से सट के
अपना मुँह नियरा करके
अपने वाणी बोलत रहऽ
अपने वाणी सुनत रहऽ
ना जानीं जे कतना पाप,
कतना छल बल,
आजो हमरा मन में लुकाइल बा,
आजो हमरा मन में समाइल बा।।
हमरा मन के ई सब पाप
जरा द हे नाथ जरा द
आग में झोंक के जरा द।।