अबकी यह आषाढ़ / राम सेंगर
खेत-कोनियाँ-पार
सभी गरकी में आए,
बारिश ने सब
इस ग़रीब के रंग उड़ाए,
कैसा कहर हमारे ऊपर प्रभु ने ढाया है ।
अबकी, यह आषाढ़,
तबाही लेकर आया है ।
कोठा गिरा
झमाझम ऐसे मेहा बरसे ।
भैंस मर गई
मठा - दूध को बच्चे तरसे ।
दाने-दाने पर
साहू ने नाम लिखाया है ।
बाँस-बल्लियाँ खड़े किए
मलबे पर बिलखे ।
बीने- खोजे कीचकाँद में
टुकड़े दिल के ।
भूखे-प्यासे जनबच्चों को
साथ लगाया है ।
घर से बेघर
ख़र्चे बढ़े, जेब है ख़ाली ।
हलाकान के
अपने दुख, अपनी बेहाली ।
कहाँ हमें
इस विकट परिस्थिति ने
पहुँचाया है ।
घूमनियाँ टिकुरी पर जाकर
डाला डेरा ।
रात कटे तो
कल देखेंगे नया सवेरा ।
सब सोएँ
हम इकले जागें ,
मन की माया है ।
अबकी यह आषाढ़,
तबाही लेकर आया है ।