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अबके दिन / रोहित रूसिया
Kavita Kosh से
अबके दिन
बीत रहे
संझाते रिश्तों की
नावें सब डोलीं
माँझी से, सकुचाती
आँखों से बोलीं
वे ही ले डूबेंगे
अब तक जो
मीत रहे
अबके दिन
बीत रहे
किरणों की किरचों से
उजियारा घायल
छाया को खोज रहा
जहाँ-तहाँ पागल
गुपचुप मुठभेड़ों में
साये सब
जीत रहे
अबके दिन
बीत रहे