अबाध चलता रहे प्रेम / प्रभात कुमार सिन्हा
चन्द्रमा को निहारते निबिड़ में
घूम रहे हो प्रेयसी के संग और
झाड़ से भेड़िया झाँकता मिले तो
प्रेम की पराकाष्ठा है कि भेड़िये को
मारने की जुगत में भिड़ जाओ
लो, मैंने कहा और झाँकने लगा भेड़िया
उसे छोड़कर जरा-सा आगे बढ़े कि
वह पीछे से पिंडलियाँ नोच लेगा
भेड़िया दांत निपोड़ रहा है
मतलब यह नहीं कि
वह तुमसे लाड़ लगाना चाहता है
यह भेड़िया शहरातु है
इस निबिड़ में वह आया है अपने
हितु को आमंत्रित करने
अले वर्ष पूरे मुल्क के गाँवों-नगरों में
आयोजित होने वाले महानृत्य में
उन्हें शामिल करना है
प्रेमासक्त-जनों से अनुरोध है कि
पत्थरों से निशाना लगाने का अभ्यास शुरू कर दें
पत्थर से डरते हैं भेड़िये
प्रेम के पक्षधर नहीं हैं भेड़िये
गाँव-नगरों में प्रवेश करने वाले
हर राह-पगडंडियों पर
कड़ा पहरा देना है
कवि भी चाहते हैं कि
पूरे मुल्क में प्रेम का अविरल प्रवाह
सुरक्षित और निर्बाध चलता रहे।