भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अबूझमाड़-2 / श्रीप्रकाश मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरी ओर देखो
कहता है बेलिक
देखो मेरी परछाई
बारह हाथ लम्बी है
और बढ़ती जा रही है

मेरी प्रेमिका को देखो
फूलता ही जा रहा है पेट
सोमारी, मंगरू, बुधई के बाद भी
हर हफ़्ते सात पुत्र
कितना विचित्र है
उसका उर्वर होना

ठीक भी है
आज बुधई गया दलम में
कल बिफई गया था सल्वा जुडुम
सुमई गया जंगल मधु काढ़ने
सनीचरी को उठा ले गया तेलुगुआ सांढ़
इतवरिया भगई उतार कर घिस रही है
पोखर पर पीठ
सोमारी राकेट है
मंगली आतिश का अनार

इनमें से कोई नहीं लौटेगा
भील कोंडा अबूझमाड़
हम तीसो दिन का रखेंगे
अलग-अलग नाम
पैदा करेंगे उनके नाम पर संतान
रोकेंगे अपनी वंशबेली का विनाश