भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अबै तो आव / सांवर दइया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ठालीबूली ठिठकारियोड़ी ठण्ड
रूं-रूं में जमगी

आ बरफ
किंयां पिघळै

अबै तो
थारै बोबा-गढ़ में ई
लाधै तो लाधै
कीं गरमास

जम्योड़ी सांसां में
कीं गति आवै
बाथां भेटा हुयां ई

आव
तूं आव
अबै तो आव
म्हारी सांसां री सागोतर !