अबॉर्शन / दामिनी
अभी तो तुम्हारे आने का
आभास-भर हुआ था
अभी तो मेरी कोख को तुमने
छुआ-भर था
कि सब जान गए,
तुम्हारे वजूद की आहट
पहचान गए,
नहीं, तुुम्हारा वजूद
नहीं है कुबुल
लड़कियों का जन्म होता है
सेक्स की भूल,
ये भूल इस परिवार में
कोई नहीं अपनाएगा।
कल मुझे अस्पताल
ले जाया जाएगा
मेरी जाग्रति को
एनेस्थीसिया संुघाया जाएगा,
मैं भी नहीं करूंगी प्रतिकार
अनसुनी कर दूंगी तुम्हारी
अनसुनी पुकार,
डॉक्टर डालेगी मेरी योनि में
लोहे के औज़ार
उन के स्पर्श से तुम
मेरी कोख में
घबरा के सिमट जाओगी।
शायद किसी अनचीन्ही आवाज़ में
मुझेे चीत्कार कर बुलाओगी,
पर अपने नन्हे-नरम
हाथ, पांव, गर्दन, सीने को
उन औज़ारों की कांट-छांट से
बचा नहीं पाओगी,
क्योंकि लेने लगे हैं वो आकार,
ओ कन्या!
इस दुनिया में आज भी
तुम नहीं हो स्वीकार।
तुम्हारे वजूद के टुकड़ों को
नालियों में बहा आऊंगी
और इस तरह मैं भी
लड़की जनने के संकट से
छुटकारा पा जाऊंगी,
वरना इस दुनिया में मैं तुम्हें
किस-किस से बचाऊंगी।
अगर बचा सकी अपना ही वजूद,
तभी तो क्रांति लाऊंगी,
मिट जाएगी मेरी पीढ़ी शायद
करते-करते प्रयास,
तब जाकर कहीं मैं इस दुनिया को
तुम्हारे लायक कर पाऊंगी
पर अभी तो ओ बिटिया!
तुम्हें मैं,
जनम नहीं दे पाऊंगी,
जनम नहीं दे पाऊंगी,
जनम नहीं दे पाऊंगी!!