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अब्र हैं दीदा-ए-पुर-आब से हम / वज़ीर अली 'सबा' लखनवी
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अब्र हैं दीदा-ए-पुर-आब से हम
बर्क़ हैं दिल के इजि़्तराब से हम
सौ तरह की गरज़ निकलती है
क्यूँ न मतलब रखें जनाब से हम
दम में मौज-ए-फना मिटा देगी
बहर-ए-हस्ती में हैं हुबाब से हम
बे-वफाओं से है वफ़ा मतलूब
तालिब-ए-आब हैं सराब से हम
जिंदगी हो गई अज़ाब हमें
गुज़रे ज़ाहिद तेरे सवाब से हम
तंग आए हैं तंग आए हैं
इस दिल-ए-ख़ानमाँ-ख़राब से हम