भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अब अँधियारे बोलें / कमलेश द्विवेदी
Kavita Kosh से
दो नैना कजरारे बोलें.
'आओ पास हमारे बोलें".
होंठ नहीं कह पायें जो भी,
वो हर बात इशारे बोलें.
"प्यारी नदिया थोड़ा रुक जा",
उससे रोज़ किनारे बोलें.
ग़म के मारों से अपना ग़म,
खुलकर ग़म के मारे बोलें.
हम तो कम बोलें पर हमसे,
ज़्यादा काम हमारे बोलें.
लेकर आज मशाल चले हम,
आयें अब अँधियारे बोलें.