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अब अँधेरों में जो हम ख़ौफ़-ज़दा बैठे हैं / ख़ुशबीर सिंह 'शाद'

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अब अँधेरों में जो हम ख़ौफ़-ज़दा बैठे हैं
क्या कहें ख़ुद ही चराग़ों को बुझा बैठे हैं

बस यही सोच के तस्कीन सी हो जाती है
और कुछ लोग भी दुनिया से ख़फा बैठे हैं

देख ले जान-ए-वफ़ा आज तेरी महफ़िल में
एक मुजरिम की तरह अहल-ए-वफ़ा बैठे हैं

एक हम हैं के परस्तिश पे अक़ीदा ही नहीं
और कुछ लोग यहाँ बन के ख़ुदा बैठे हैं

'शाद' तू बज़्म के आदाब समझता ही नहीं
और भी लोग यहाँ तेरे सिवा बैठे हैं