Last modified on 26 सितम्बर 2018, at 19:32

अब अगर घबरा के हम मर जाएंगे / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'

अब अगर घबरा के हम मर जाएंगे
दर्दे-दिल को साथ लेकर जाएंगे

जख़्म ऐसे ही नहीं भर जाएंगे
ये हमारी जान लेकर जाएंगे

इक फ़क़त उनके करम की देर है
रफ़्ता रफ़्ता जख़्म सब भर जाएंगे

आप गर देखेंगे अपनों के फ़रेब
दोस्ती के नाम से डर जाएंगे

आज कल 'अंजान' कुछ बीमार है
आज हम अंजान के घर जाएंगे।