भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अब आंगन में गोरैया नहीं आती / दीपा मिश्रा
Kavita Kosh से
अब आंगन में गोरैया नहीं आती
पता नहीं क्यों रूठ गई
पानी दाना कटोरी लेकर बैठी हूं
कहां चली गई
वह सुंदर छोटी सी चिड़िया
जिसकी प्यारी बोली
सुबह-सुबह पूरे आंगन को
जगा देती थी
जीवन का नया संदेश देती थी
क्या हमने ही उसे खत्म कर दिया
क्या यह हमारी ही गलती है
शायद हां
हमने ही छीन लिए उससे
खेत खलिहान पुआल
सब कुछ जिसके इर्द-गिर्द
वह फुदकती रहती थी
दाना तिनका चुगती रहती थी
अब वह कैसे आएगी
सोचना पड़ेगा मिलकर
तभी शायद हम अपने आंगन में
जीवन का वह नन्हा रूप
फिर से पा सकेंगे