भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अब इंतिहा का तिरे ज़िक्र में असर आया / शाद अज़ीमाबादी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब इंतिहा का तिरे ज़िक्र में असर आया
कि मुँह से नाम लिया दिल में तू उतर आया

बहुत दिनेां पे मिरी चश्‍म में नज़र आया
ऐ अश्‍क ख़ैर तो है तू किधर किधर आया

हज़ार शुक्र कि इस दिल में तू नज़र आया
ये नक़्शा सफ़्हा-ए-ख़ाली पे जल्द उतर आया

बशर हबाब की सूरत हमें नज़र आया
भरी जो क़तरे के अंदर हवा उभर आया

ज़बाँ पे आता है नाला भी सौ करिश्‍मों से
कहाँ से आप के अंदाज़ का असर आया

अदम में ऐश में है चलता हूँ मैं भी ले ऐ दिल
जहाँ में जितने मुसीबत के दिन थे भर आया

लिखे को रोइए अब ता-ब-हश्र तुर्बत में
कि मेरे मरने पे ख़त ले के नामा-बर आया

पड़ा है शब से यूँ ही अब तलक न ली करवट
दिल-ए-सितम-ज़दा उस की गली से मर आया

हज़ार शुक्र ख़ुदा का यही ग़नीमत है
न ख़ैर आया मिरे दिल को और शर आया

रिया तो दिल में थी माथे पे अब है उस का निशाँ
कहाँ का दाग़ कहाँ दफ़अतन उभर आया

मुक़ीम-ए-दिल है डँवाँ डोल रह के अब ईमाँ
बुतों के क़हर से छूटा ख़ुदा के घर आया

हमारे पा-ए-तलब ने बड़ी मुहिम सर की
कि कट के सामने क़ातिल के अपना सर आया

शराब पी के मैं पहुँचा फ़लक पे ऐ साक़ी
कहाँ से उन कई क़तरों में ये असर आया

वो चाहे बद कहे क़ासिद बुतों को या मुझ को
हरम में चैन से ईमान जा के धर आया

लहद में शाना हिला कर ये मौत कहती है
ले अब तौ चौंक मुसाफ़िर कि अपने घर आया

हज़ार शुक्र हुआ आफ़्ताब-ए-हश्र तुलूअ
बड़ी तो लाज रही ये कि तू नज़र आया

गवाहियाँ हुईं आज़ा की हश्र में मक़्बूल
वो पाक हो गए इल्ज़ाम मेरे सर आया

हुजूम-ए-ग़म ने सिखाने की लाख कोषिष की
हमें तो आह भी करना न उम्र भर अया

जो चंद दिन में हुई ज़ी-कमाल कौन हैं ‘शाद’
हमें तो शेर का कहना न उम्र भर आया

उसी को शेर समझते हैं ‘शाद’ अहल-ए-मज़ाक़
उधर पढ़ा कि दिलों में इधर उतर आया