Last modified on 24 फ़रवरी 2014, at 09:58

अब इतना बुर्द बार न बन मेरे साथ आ / मुज़फ़्फ़र हनफ़ी

अब इतना बुर्द बार न बन मेरे साथ आ
बदलेंगे मिल के चरखे कुहन मेरे साथ आ

पेवंद ऐ खाक होना हे बारे अभी नहीं
फैला हुआ हे नील गगन मेरे साथ आ

पलकें बिछी हैं मेरी हर एक मौज ऐ आब में
उस पालकी पे चाँद किरण मेरे साथ आ

ऐ रूह ऐ बेक़रार, अभी जान मुझ में हे
ज़ख्मों से चूर चूर बदन मेरे साथ आ

वेसे भी अपने दस्त ऐ हूनर खा रहे हैं ज़ंग
फीका पड़ा है रंग ऐ चमन मेरे साथ आ

सच बोलने का तुझ को बड़ा इश्तिआक है
अच्छा तौ सर से बाँध कफ़न मेरे साथ आ

यारों ने इंक़िलाब तो नीलाम कर दिये
अब छोड़ कर यह दार ओ रसन मेरे साथ आ