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अब इश्क़ के आग़ाज़ को अंजाम किया जाए / कांतिमोहन 'सोज़'

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अब इश्क़ के आग़ाज़ को अंजाम किया जाए ।
जब काम ही करना है तो कुछ काम किया जाए ।।

अब शर्मो-हया की किसे दरकार है यारो
जो कुछ भी किया जाए सरे-आम किया जाए ।

अन्देशा घरों में कई सदियों से पड़ा है
है चीज़ क़दीमी<ref>पुरानी,मूल्यवान</ref> इसे नीलाम किया जाए ।

हाँ साज़िशे-अग़यार<ref>ग़ैर की साज़िश</ref> की तन्क़ीद<ref>आलोचना</ref> है बेसूद<ref>बेकार</ref>
मक़्सद तो है कैसे उसे नाकाम किया जाए ।

बेजान सी आती है नज़र शामे-ग़रीबां<ref>मरघट की शाम</ref>
प्यासी भी है दारू का सरंजाम<ref>इन्तज़ाम</ref> किया जाए ।

इस दिल में नहीं कुछ भी बस एक ख़्वाब बचा है
उसको भी चलो नज़्रे-गुलंदाम<ref>गुलाब जैसे मुखड़ेवाली को भेंट</ref> किया जाय।

अलफ़ाज़ के इस खेल से अब ऊब चले सोज़
गोशे में क़फ़स<ref>पिंजरे का कोना</ref> के ज़रा आराम किया जाए ।।

शब्दार्थ
<references/>