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अब इस मकाँ में नया कोई दर नहीं / अहमद महफूज़
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अब इस मकाँ में नया कोई दर नहीं करना
ये काम सहल बहुत है मगर नहीं करना
ज़रा ही देर में क्या जाने क्या हो रात का रंग
सो अब क़याम सर-ए-रह-गुज़र नहीं करना
बयाँ तो कर दूँ हक़ीक़त उस एक रात की सब
पे शर्त ये है किसी को ख़बर नहीं करना
रफ़ू-गरी को ये मौसम है साज़-गार बहुत
हमें जुनूँ को अभी जामा दर नहीं करना
ख़बर है गर्म किसी क़ाफ़िले के लुटने की
ये वाक़िया है तो सैर ओ सफ़र नहीं करना