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अब उजालों से कोई आता नहीं है / राकेश जोशी

अब उजालों से कोई आता नहीं है
भीड़ में भी कोई चिल्लाता नहीं है

मैं कभी डरता नहीं हूँ भीगने से
सर पे कोई छत नहीं, छाता नहीं है

जिन किताबों में गरीबी मिट गई है
उन किताबों से मेरा नाता नहीं है

बिल्लियों के संग वो पाला गया है
शेर होकर भी वो गुर्राता नहीं है

डाँटते हैं सब नदी को ही हमेशा
बादलों को कोई समझाता नहीं है

इस जगह तुम ज़िंदगी को ख़त्म समझो
इससे आगे रास्ता जाता नहीं है