भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अब और नही - 2 / नीरजा हेमेन्द्र
Kavita Kosh से
आज यह पराजित न होगी
न होगी आहत
जब भी इसकी देह में
ढूँढोगे कुछ भी
वह अपना प्रेम समर्पित कर देगी तुम्हे
तुम्हारे नेत्रों में जलते दानवी अंगारे
जब भी उसके जिस्म को जलायेंगे
वह तुम्हे प्रेम का पाठ पढ़ाने को तत्पर हो जायेगी
बहुत सह लीं इसने
तुम्हारी भूलें व अज्ञानता
अब और नही... और नही... और नही...