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अब कहाँ है शोर जो तन्हाईयाँ बदलूँ / रंजना वर्मा
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अब कहाँ है शोर जो तन्हाईयाँ बदलूँ
आशियाँ बदलूँ कि ये वीरानियाँ बदलूँ
बन गयी उल्फ़त तमाशा है ज़माने में
ख़्वाब बदलूँ या कि फिर रानाइयाँ बदलूँ
बिन बताये जिंदगी की बात क्या समझे
लब न बोलें आज सब अमराइयाँ बदलूँ
रस्म शादी की थी दूल्हा ही नहीं आया
बज रहीं दहलीज़ पर शहनाइयाँ बदलूँ
आज इस के साथ है कल साथ था उसके
क्या वफ़ा ए इश्क़ की गहराइयाँ बदलूँ
हो गयी कुछ बदगुमानी हैं कई शिक़वे
खुद को बदलूँ या कि फिर परछाइयाँ बदलूँ
मंजिले मक़सूद तो है दूर अब तक भी
राह में जो आ पड़ीं वो खाइयाँ बदलूँ