भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अब का तुक्का-पुक्का फाड़ो / जयप्रकाश त्रिपाठी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब का तुक्का-पुक्का फाड़ो
पढ़ो पहाड़ा भाईजी।
चुनाव चुक्का-मुक्का, लिक्खो
नया पहाड़ा भाईजी।

दिल्ली दाँत निपोरे टुकटुक
जो जीते, सबके जी धुकधुक
सुकपुक-सुकपुक पारा डोले
फूँके डाढ़ा भाईजी।

विदुर बिदोरे होंठ, कान से
खोंट खँगालें
इधर जाल, फिर उधर जाल
टप्पे-टप्प डालें
जय हो दिन्नानाथ
हुई ताधिन्ना धिन्ना, बिना बिमारी
छानैं काढ़ा भाईजी।

झनझन्ना सइकिल, हत्थी हत्थे से बाहर
छकछक्का पँजा पर अम्मा की डौंड़ाहर
फुलवा फुसरावै आगे तौ
चिल्ला जाड़ा भाईजी।