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अब के बरस री आए है घर में / ब्रजमोहन
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अब के बरस री आए है घर में
तीज-त्योहार ये ऐसे — जैसे आए है बीमारी कोई ...
पींग बढ़ाई री महँगी ने ऐसी
टूटी रे डाल गिरा कहीं झूला हो मारे किलकारी कोई ...
रंग-गुलाल से जी नहीं बहले
बिटिया के ब्याह ने नींद उड़ाई
सजन काम से गयो रे हटायो
ठण्ड में गुदड़ी भी गई मोरे भाई
सोवें काठ-से री देवी-देवता जागे रे दुखारी कोई ...
गोरी की आँख री हँसती न देखी
देखे न ओंठ री कैसे मुस्कावैं
सावन आवें री ऐसे — जैसे
पत्ते टूट के पेड़ से जावें
गीत हवा में ऐसे खोए याद न आवे री कोई ...
सब के आँगन में दुख खेले
सुख किसके आँगन सोया री
काट-काट के जीवन काटा
सोच-सोच के घर रोया री
ज़िन्दगी किसी की री बस में किसी के करे है सवारी कोई ...