भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अब के बरस / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
चौथाई टिड्डी
चौथाई फाके का
कछु साहूकार का
कुछ पटवारी का
अब के कर्ज चुकाना है
बिरखा हो तो
लिखियो काका
अब के जल्दी आना है ।